भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आमंत्रण / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
मृत्यु —
आना,
एक दिन ज़रूर आना !
और मुझे
अपने उड़नखटोले में
बैठा कर ले जाना;
दूर ... बहुत दूर
नरक में !
- जिससे मैं
- नरक-वासियों को
- संगठित कर सकूँ,
- उन्हें विद्रोह के लिए
- ललकार सकूँ,
- ज़िन्दगी बदलने के लिए
- तैयार कर सकूँ !
नहीं मानता मैं
किसी चित्रागुप्त को
किसी यमराज को;
चुनौती दूंगा उन्हें !
बस, ज़रा कूद तो जाऊँ
नरक-कुण्ड में !
मिल जाऊँ
नरक-वासियों के
विशाल झुण्ड में !