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आम्रपाली / प्रब्रज्या / भाग 1 / ज्वाला सांध्यपुष्प

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दीक्षित भेल आई अम्रपाली
तथागत के सोझा में
आम्रन के जेन्ना उ अर्पित कएलक रऽ ओनाहिते
अप्पन दुलारी करिआ केश-राशि के
निरदई बन कतर देलक
एक्करा पहिले घुंघरू आ
कटि-किंकणी के जेन्ना
उ उतार फेकलक होइत
ओनाहिते अप्पन चटकदार सारी के
साँप के छोड़ल पोआ नाहित
उतार फेकलक
आ खूब पीयर लकदक गेरूआ पेन्ह कऽ
जग के एषणा आ वासना के
गोर में लपटाएल साँप जक्ता
जगत के मिथ्यात्व के पहचान निमित्त
प्राणी के प्रति करुणा
के दान करे लेल तइयार हति।

जल्दी करऽ सिद्धार्थ
देर न करऽ
न तऽ
कखनी की हो जाएत इ
मिथ्या जगत् में
राजनीति के जगत् में
हीआँ सब्भे कुछ ओझराएल मिलत
रउआ जेतना सोझराएम ओक्करा
राजनीति के लस्सा में लपटा कऽ ऊ
खूब जटिल बन जाएत
जल्दी करऽ सिद्धार्थ
इ सऽ इ गणतंत्र के महिमा हए
जे से हमहूँ एतना बोलइत हती
बज्जी संघ से नाता तोड़
तोहर बौद्ध संघ में
राजनीति के छात्र-विहीन
कठोर आ जटिल
उपासना पद्धति के गिलइत हती
हीयाँ राजतंत्र के दाल न गलइअ
न तऽ तोहरो मिलल
इ स्वतंत्रता आ स्वच्छंदता
कखनी छिन जाएत रऽ
हम्मर बात पतिआउ अमिताभ!
हम्मरा अतिशीघ्र अप्पन संघ में
प्रब्रजित ककऽ मिलाऊ।

हे अम्रपाली!
हरबरानाई ठीक न होइऽ
न अगुताऽ
तू ठीक जनलऽ मग्गह राज
हम्मर शिष्य बिम्बसार
अप्पन काया के
अप्पन पुत्र अजातशत्रु के भौतिक कारा
मिथ्या जगत के मधुर माया के
भँउजाल में से निकाल पाबे में
सफल आ उत्तीर्ण हो गेल
बिना केक्करो दुख देले
उ महान आत्मा के
शान्ति के लेल, आबऽ प्रार्थना करऽ।
अम्रपाली एकटक तकइत रहल
दून्नो आँख से
जीवित प्राणी सन
एक-एक बून लोर
दुन्नो आँख के कोर में आकऽ
प्रहरी नाहित खड़ा हो गेल
आ तथागत के टोके पर
प्रहरी जकता खड़ा उ
लोर के दून्नो लघु बून
अप्पन अस्तित्व के खतम ककऽ
आराध्य बिम्बसार के लेल
श्रद्धा के सुमन अर्पित कएलक।

सम्राट! जे सर्वप्रथम चाहलक रऽ
सम्राट! जे अज्ञात यौवना के
झोरा में आएल सोना रहे
सम्राट! जे एक्करा लेल
राज-पाट
गद्दी-सिंहासन
ठाठ-बाट
के भुलएले रहे
सम्राट! जेक्करा पर अम्रपाली समर्पित रहे
सम्राट! जेक्कर गति आई
दोसरो प्राणी सन
ऐहे होना रहे
सही में ऊ सोलहो आना शुद्ध सोना रहे
जहर पीलक
आन्हर बनल जेक्करा लेल
आइ तक ऊ नारी भिक्षुणी न बनल
सुन्दरी के पोआ ओर्हले रहल।
टोकलन बुद्धदेव

ठमकल अम्रपाली
चउँकल अम्रपाली
डेराएल अम्रपाली
आ तथागत के चरण पर गिर गेल
राजा, रानी सऽ तुरंत जुट गेल

गरज उट्ठल अकास
बरस उट्ठल मेघ
पसर गेल प्रकाश
गूंजल नेपथ्य

बुद्धं शरणं गच्छामि
संघं शरणं गच्छामि
धम्मं शरणं गच्छामि....।