आम्रपाली / वैशाली गमन / भाग 6 / ज्वाला सांध्यपुष्प
दूत, भूत कि कोनो भिखमङा।
साधु रूप में तु हए कोन लङा॥
साध लोग के भात मिलइअ।
कपट करे पर इ लात मिलइअ॥44॥
कपटी राबण राम से मरल।
हम्मर रूप तोरा आँख गरल॥
सीता रहन राम के कनिआँ।
पंचकन्या दौपदी हमहु हिआँ॥45॥
‘तू दौपदी एगो पांडव हमहूँ।
राजा विशाल सन लाल हमहूँ॥
इ देश में तू करइत हतऽ कथि।
मग्गह में राज हम करइत हति॥’46॥
अम्रपालि तनियक् होएल लरम।
देखलक राजा लोहा गरम॥
राजा निहोरा कएलक खूब।
बान्ह बराइ के बन्हलक खूब॥47॥
‘तोहर रूप पर दुनिया मरल।
तू सड़इत हीआँ रहबऽ परल॥
कि मान करत तोहर विशाला।
देबाएत बुद्ध से कन्ठी माला॥48॥
देखऽ हम्मर इ छाती चउरगर।
मग्गह-राज के खजाना अहगर॥
पट्रानी के जग्गह खाली हए।
मिलल न अबतक मतबाली हए॥49॥
मुँह मलिन न तनको होए देलक।
‘राज-भवन रुकु’ न्योता देलक॥
चलल अम्रपालि बतला अगारी।
‘देह धोउ बतिआएम पिछारी॥50॥
सुरुज के मूझल बत्ती अब हो।
चौर के पानी में डूबल हो॥
अन्हरिया के मिलल रस्ता अखनि।
अजातशत्रु घुसुक भागल कखनि॥51॥