आम्रपाली / सपना / भाग 2 / ज्वाला सांध्यपुष्प
लगइअ इ कोनो दोसर लक्कर।
गणतंत्र पर हए बरका चक्कर॥
हए बहरे सब्भे माल-जाल।
आ गेल ोनो बरका काल॥10॥
हवा थपथप करे केमारी।
भुक्खल जेन्ना कोनो भिखारी॥
रावण बनल, खड़ा हए दुरा पर।
सान चढ़ावे अब छूरा पर॥11॥
धरती डोलइअ अकाश कँपइअ।
बरका पीप्पर सेहो हिलइअ॥
लगइअ घुरमी अब हिलुआ से।
जेन्ना डेरा हऽ तु अरिआ से॥12॥
करिआ केस उड़इअ केन्ना।
चुम्मा लेइअनाग कोइ जेन्ना॥
लग्गल उठौना सपनाबे के।
कोइ बोलाबे अपनाबे के॥13॥
अप्पना अप्पना कोई न अपना।
अप्पन दुनिया बनल हए सपना॥
देश अप्पन राजा-रानी अप्पन।
दुख में कोनो न साझी होतन॥14॥
कसूर सबके, सब्भे देखइअ।
अप्पन ढेढ़र कोई न देखइअ॥
मिलल हए काम नृत्य-इस्कूल में।
दोष देखइअ इ बनफूल में॥15॥
कोनो न बूझे इ चण्डी हए।
सब्भे कहइअ ऊ रंडी हए॥
पर्हाबे बाला के न हए मान्
मरद के माथा कइसन् भगवान्॥16॥
अप्पन देश से प्रेम न जेक्करा।
नेह न नारी पर हए ओक्करा॥
गबइअ उ गीत बरबादी के।
विचार न ओक्करा खादी के॥17॥
ताड़ी पीकऽ सामंत घुमइअ।
देशो के उप्पर काल नचइअ॥
अन्न के उपजा सेहो कम्मल।
चारो ओरी से मरइअ निम्मल॥18॥