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आयलन स्वप्न-सन्तति / अदिति वसुराय / लिपिका साहा

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आयलन ने जब
भैया की साइकिल के लिए ज़िद की थी ...
दुनिया के इस ध्रुव पर,
मैं रोज़ सोचा करती थी ...

शोक कितने प्रकार के होते हैं
और क्या-क्या होते हैं ?
इस मामले में मृत्यु अवश्य ही
सभी के मुक़ाबले
दस गुना ज़्यादा भारी शोक है।
विरह भी इस कैनवस पर
कुछ कम जगह नहीं घेरता है ।
हैं चले जाना, अप्रेम, विषाद ...

यादों के संग गम का
एक रिश्ता तो रहता ही होगा.....क्यों ?
शोक सम्बन्धी ऐसे ही सारी धारणाएँ लेकर
दिन बीत रहे थे ।

आयलन जब डोंगी पर बहते-बहते
रातों को भूखा रहते-रहते
माँ के बारे में सोचते-सोचते
खारे पानी में हाँफते-हाँफते
ठण्ड से नीला पड़ते-पड़ते
पैदा होने के अभिशाप से मरते-मरते
आकर रेती में अटक गया
पल भर में मेरे शोक समूह प्रस्तरीभूत हो गए ।

वही सुर्ख गंजी, शिशु जूतियाँ, फूल से खिले होंठवाला मृतक शव
नींद में मेरा पीछा करने लगे
हर मिनट
हर दिन ।

फिर सपने में भी आयलन कभी नहीं जगा ।
एक बार, सिर्फ़ एक बार
काँप उठा था वह ।
जब कानों में उसके बताया था मैंने, आयलान मेरे पिता का नाम ।

आयलन वह शरणार्थी
सीरियाई शिशु,
जिसकी लाश की तस्वीर वायरल हुई थी ।

मूल बांगला से अनुवाद : लिपिका साहा