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आये कुछ अब्र कुछ शराब आये / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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आए कुछ अब्र कुछ शराब आए
उस के बाद आए जो अज़ाब आए

बाम-ए-मीना से माहताब उतरे
दस्त-ए-साक़ी में आफ़ताब आए

हर रग-ए-ख़ूँ में फिर चराग़ाँ हो
सामने फिर वो बेनक़ाब आए

उम्र के हर वरक़ पे दिल को नज़र
तेरी मेहेर-ओ-वफ़ा के बाब आए

कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बेहिसाब आए

न गई तेरे ग़म की सरदारी
दिल में यूँ रोज़ इन्क़लाब आए

जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बाम
जब भी हम ख़ानाख़राब आए

इस तरह अपनी ख़ामोशी गूँजी
गोया हर सिम्त से जवाब आए

'फ़ैज़' थी राह सर बसर मंज़िल
हम जहाँ पहुँचे कामयाब आए