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आरज़ूओं की रूतें बदले ज़माने हो गए / सरफ़राज़ दानिश

आरज़ूओं की रूतें बदले ज़माने हो गए
ज़िंदगी के साथ सब रिश्ते पुराने हो गए

आबला-पाई ने ऐसी शोख़ियाँ कीं रेत से
वक़्त के तपते हुए सहरा सुहाने हो गए

चंद लम्हे को तू ख़्वाबों में भी आ कर झाँक ले
ज़िंदगी तुझ से मिले कितने ज़माने हो गए

रात दरवाजे पे बैठी थी सो बैठी ही रही
घर हमारे रौशनी के कार-ख़ाने हो गए

शोख़ियाँ ‘दानिश’ मतानत की तरफ़ हैं गामज़न
ऐसा लगता है कि अब हम भी पुराने हो गए