आरती / 1 / राजस्थानी
गौरां तो बन में सुनो जी शंकर आरती,
जो घर जन्मे जी पूत, बहू घर आवे मुलकती।
बीरां गांव ग्वाड़ा से गोबर ल्याओ, पीलो तो ल्याओ के सरया।
बीरां गंगा जमुना रो नीर मंगाओ, माणक मोती चौक पुरावो,
लेवो सिंहासन बेसना।
बीरां जयारे सिंहासन बैठे लाडा कर बाई, भूवा आरती।
बीरां टीको जी काडै खड़ी जी मांगू, चावल चेडू चगेबड्या।
बीरां गाड़ी भर गेहूं की मांगू, ऊपर का सीघटा।
बीरां लुल लुणाती सांभर मांगू, छोटो सो बीर पूछावे जी।
म्हारां माथा पर रखड़ी मांगू और सोना टीको जी
बीरां काना पर कुण्डल मांगू, ऊपर झबरक झूठंणा
म्हारां मुखड़ा परवाने नथड़ी जी मांगू, ऊपर तिलड़ी टेवेटो।
म्हारी बैयां परवाणे चूड़लो मांगू, ऊपर गजरा गूजरी।
म्हारी कड़िया परवाणे लहंगो मांगू ऊपर लाल चून्दड़ी
बीरां पग्लयां मरवाणे पायल मांगू ऊपर बिछिया बाजना।
बाई इतरो ऐ बाई वा देसी जो कोई बहन बुलावसी।
चिर जीवो दशरथ जी रा जाया, बहन रो मान बढ़ायो।
हरिया ले आंगन म्हारां बीरा जी बैठिया।
दीनी म्हारी बहना आशीष जी।
थे तो फल जो म्हारां बीरां बड़ पीपल ज्यो बढ़ज्यो कड़वा नीम ज्यूं।
घूंघट में खड़ी म्हारी भावज ऊबी,
देओ म्हारी ननद बाई आशीष जी।
थे तो ए भावज दो पूत जणजो, एक जणजो दीयड़ी।
थांरी घोड़ी ने परदेश दीजो,ज्यो चितआवे भोली नणदली।