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आलमे-दिल पे छा गया कोई / हरिराज सिंह 'नूर'
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आलमे-दिल पे छा गया कोई।
यूँ क़रीब इतना आ गया कोई।
इस कदर मेहरबां हुआ मुझपर,
मेरे दिल में समा गया कोई।
हो गया ज़ब्त मेरा बेक़ाबू,
इसलिए ही रुला गया कोई।
मेहरबानी यही है उस ‘रब’ की,
मुझ पे सब कुछ लुटा गया कोई।
भूलकर हर चलन ज़माने का,
मुझको इन्सां बना गया कोई।
साग़रों की किसे ज़रूरत थी?
मय नज़र से पिला गया कोई।
क़िस्मते-‘नूर’ देखो दिलवालों!
दिन में तारे दिखा गया कोई।