Last modified on 25 मई 2012, at 13:10

आवाज-तीन / कमलेश्वर साहू


मेरा दामन थामो
और चले आओ मेरे पास
गर पाना चाहते हो मुझे
मुझसे कहती थी एक आवाज
बरसों पहले
उस आवाज का दामन थामें
उसी के बुने धागे पर
चल रहा हूं बरसों से अविराम
फासला उतना ही है
जितना
बरसों पहले
थक तो नहीं गये
हार तो नहीं जाओगे-
आवाज वह
अब भी पूछ रही है मुझसे-
मर तो नहीं गई
मुझ तक पहुंचने की
तुम्हारी इच्छा !