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आशावाद / वेणु गोपाल
Kavita Kosh से
तूफ़ान है
और जड़ों तक काँप रहा है पेड़।
लेकिन उसकी डाल पर बैठे
कवि के लिए
भविष्य उजला है।
क्योंकि वह पेड़ नहीं
उसका काँपना नहीं
तूफ़ान नहीं
बल्कि पत्तों का हरापन
देख रहा है।