आशा के फूल / ज्योत्स्ना शर्मा
नए वर्ष में दीजिए, बन माली उपहार।
निर्भय हो कलियाँ करें, उपवन का शृंगार॥
वल्लरियाँ विश्वास की, हों आशा के फूल।
नूतन वर्ष मनाइए, तज तृष्णा के शूल॥
नयनों में सपने लिये, अधरों पर मुस्कान।
समय सखा फिर आ गया, नए पहन परिधान॥
मानव-मन पाकर खिले, सदाचार की धूप।
सुख-सौरभ महके सदा, पाए रूप अनूप॥
संग हँसें रोंएँ सदा, नहीं मिलन की रीत।
प्रभु मेरी तुमसे हुई, ज्यों नैनन की प्रीत॥
कल ही थामा था यहाँ, दुख ने दिल का हाथ।
आकर ऐसे बस गया ज्यों जनमों का साथ॥
सुख की छाया है कभी, कभी दुखों की धूप।
नियति-नटी को देख लो, पल-पल बदले रूप॥
सरस अंजुरी प्रेम की, करें आचमन आप।
सुर-सरिता सुख सार की, बहे यहाँ चुपचाप॥
सागर, सुख दुख की लहर, ये सारा संसार।
केवल आशा ही हमें, ले जाएगी पार॥
मधुर मिलन की चाह मन, नैनन दर्शन आस।
कौन जतन कैसे घटे, अन्तर्घट की प्यास॥
दीपक बाती से कहे, तुम पाओ निर्वाण।
मेरी भी चाहत जलूँ, जब तक मुझमें प्राण॥
क्यों भूली जाती नहीं, बीती सारी बात।
सुखमय सुन्दर भोर हो, या फिर दुख की रात॥
ज्योतिर्मय जीवन मिला, मत कर इसको धूल।
तज दे मन के द्वेष को, बीती बातें भूल॥
खुशियों की कलियाँ-सजें, कर कंटक निर्मूल।
सुरभित हो जीवन कथा, बीती बातें भूल॥
दुनिया के बाज़ार में, रही प्रीत अनमोल।
ले जाए जो दे सके, मन से मीठे बोल॥