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आषाढ़ - १ / ऋतु-प्रिया / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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पावसक ई प्रथम-यौवन-दर्शनक दिन अछि तुलायल
नीरदक तेँ गाँथि माला साजि नव-आषाढ़ आयल

आइ उत्सुक प्राण-दीपक
स्नेह लै आकुल बनल अछि,
यक्षिणी अलका पुरी मे
यक्ष-मन संकुल बनल अछि

कालिदासक विरहिणी
दिन गनथु आङुर पर निरन्तर
कृषक-कामिनी केर अन्तर मे-
मुदित शतदल फुलायल
नील-कमलक गाँथि माला साजि नव-आषाढ़ आयल

मसृण दूर्वादल विषादेँ
मलिन-मुख, कृश-तन बनल छल,
झरकि झूर झमान ताड़क
ठाढ़ तरु निश्चल तनल छल,

ज्वलित रवि-कर-निकर सम्मुख
रूप धय पहुँचल अनल छल,
नभ निरखि नहि सहि सकल से
द्रवित दृग-जल झर-झरायल
तरल नभ मे तरल लोचन भेल आषाढ़ आयल

देखि ग्रीष्मक ताप, पीड़ित
झड़ल जामुन झहरि झरझर,
हरित सस्मित आम सहजहि
वेदना सँ भेल पीअर,

आबि किछु आवेश मे क्रोधेँ
अरुण-मुख विकल बड़हर,
आइ अवनिक अधर भीजल
चिर-पिपासा सँ सूखायल
नील-घट मे वियद् गंगाजल भरल आषाढ़ आयल

ग्रीष्म सँ सन्तप्त धरणी
धैर्य धय कैलनि तपस्या,
जीवनक संघर्ष मे समुचित
सभक सम्मुख समस्या,

देखि समयक गति विषम
प्रकृतिक विजय, अपने पराजय,
आइ लाजेँ लाल-मुख रवि
जाय सागर मे समायल
नील-नभ पर कृष्ण-पट दय साजि नव आषाढ़ आयल

कमलिनी-वन मे मुदिँत
भ्रमरी मधुर वीणा बजाबय,
आर्द्र थल आर्द्रा प्रसादेँ
कृषक मेघ मलार गाबय,

क्षितिज तट पर निखरि बिहुँसल
विमल-इन्दु उघाड़ि घन-पट,
कुमुदिनी चौंकलि पुलिन पर
भ्रमर लम्पट अछि बन्हायल
नीरदक तेँ गाँथि माला साजि नव आषाढ़ आयल