आषाढ़ / आरती 'लोकेश'
पावस ऋतु का पावन मास,
खुशियों की लाता बाढ़ है।
चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ गए,
कि चल रहा आषाढ़ है।
कालीदास के मेघदूत कब,
वर्षा का देंगे संदेश।
प्रेमी अम्बुधि से मिलने को,
संकरी नदिया ने खोले केश।
गर्जन सुनकर कृषक देखता,
आशा के वारिद के देश।
कृपासिंधु की दया हुई तो
खेत धरेंगे हरीतिमा वेश।
द्वय को आकाश पर विश्वास,
अब हो चला प्रगाढ़ है।
सबको मन को हर्षाने वाला,
कि चल रहा आषाढ़ है।
गर्मी से त्रस्त प्यासी धरा की,
बादल ने सुनी पुकार है।
शुष्क हवा का बदन भिगो,
पहुँची नम मधुर फुहार है।
उच्च निम्न न भेद मानता,
धनिक, वणिक या लुहार है।
बूँदों की माला सब को पहना,
मोती लुटाता सुनार है।
झाड़-झंखाड़ सज नव पल्लव
न मरुस्थल रहा उजाड़ है।
गुरु पूनम वामन नमन करो,
कि चल रहा आषाढ़ है।