आसमानी लोरियाँ / मख़दूम मोहिउद्दीन
रोज़े रोशन<ref>प्रकाशित दिन</ref> जा चुका, हैं शाम की तैयारियाँ
उड़ रही हैं आसमाँ पर ज़ाफरानी सारियाँ ।
शाम रुख़सत हो रही है रात का मुँह चूमकर
हो रही है चर्ख़<ref>आकाश</ref> पर तारों में कुछ सरगोशियाँ<ref>कानाफूसी</ref> ।
जल्वे हैं बेताब परदे से निकलने के लिए
बन-सँवर कर आ रही हैं आसमाँ की रानियाँ ।
नौ उरूसे शब<ref>नए वार्षिक उत्सव की रात</ref> ने पहना है लिबासे फाख़ुरा<ref>बहुमूल्य लिबास</ref>
आसमानी पैरहन<ref>पोशाक</ref> में क़हक़शानी<ref>बिजली</ref> धारियाँ ।
कारचोबी<ref>ज़री का काम किया हुआ</ref> शामियाने में रची बज़्मे-निशाते<ref>आनन्द की सभा</ref>
साज़ ने अंगड़ाई ली बजने लगी हैं तालियाँ ।
लाजवरदी फ़र्श<ref>लाज की पोशाक वाली धरती</ref> पर है मुश्तरी<ref>बृहस्पति ग्रह</ref> ज़हरा<ref>शुक्र ग्रह</ref> का रक़्स
नील तन किरशन के पहलू में मचलती गोपियाँ ।
दस्तो पा<ref>हाथ और पाँव</ref> की नर्मो ख़ुशआहंग<ref>ख़ुशी का साज़</ref> हलकी जुम्बिशें<ref>थिरकन</ref>
या फ़जा में नाचती हैं गुनगुनाती बिजलियाँ ।
सरमदी नग़मात<ref>ख़ुशी के गीतों से</ref> से सारी फ़ज़ा मामूर<ref>परिपूर्ण</ref> है
नुत्क़<ref>नातिया गीत जिसे कव्वाली की तरह पढ़ते हैं</ref> रब्बे जुलमनन<ref>पढ़ने में व्यस्त</ref> हैं रात की ख़ामोशियाँ ।
नींद-सी आँखों में आती है झुका जाता है सर
सुन रहा था देर से मैं आसमानी लोरियाँ ।