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आसमान में तारे की तरह / संजय चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
अगरबत्ती जलाने से
इतनी भी रोशनी नहीं होती
कि एक आदमी अपना रास्ता देख सके
एक चमक-सी मालूम होती है
और धीरे-धीरे फैलती है
हल्की ख़ुशबू
जिसे अन्धे भी महसूस कर सकते हैं
अने वाले दिन पता नहीं कैसे हों
कभी कोई अच्छी बात सुनाई देगी
तो लगेगा
अंधेरे शहर में अगरबत्ती जल रही है
अगरबत्ती मशाल नहीं बन सकती
वह ख़त्म होने तक टिमटिमाती है
जैसे ख़त्म हो जाने के बाद उसकी याद
आसमान में एक तारे की तरह।