आसान है किताब होना / संतोष श्रीवास्तव
स्पर्श की आंच में वह
पन्ना पन्ना खुलने लगी
निकल कर आने लगा
सदियों का इतिहास
आध्यात्म का गूढ़ रहस्य
गुलामी का ज़माना
सभ्यताओं का उदय और अस्त
उन्हीं पन्नों से निकलने लगे
कबीर के सबद
कुरान की आयतें
अवेस्था की गाथाएँ
इंजील के सरमन
कन्फ्यूशियस के सुवचन
गायत्री के मंत्र
नहीं समझ पाया वह
आहिस्ता से किताब बंद कर
वह ज़माने की थोथी
चकाचौंध में खो गया
मैंने हँसकर कहा
देखी ,जड़ता की
उपेक्षा की पराकाष्ठा?
रखा रह गया
तुम्हारे पोथों का महत्त्व?
किताब भी हंसी
जैसे वह तुम्हें नहीं समझ पाया
तुम्हारे अंदर की स्त्री को
वैसे ही मुझे भी नहीं
नहीं यह इतना आसान नहीं है
एक बार बनकर तो देखो स्त्री
किताब घबराकर
अपने पन्नों में
सिमटने लगी
पर मेरे लिए
आसान था कहना
काश बनाने वाले ने मुझे
किताब बनाया होता