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आसोज मांय मेह..!! / निशान्त
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					अेक
पेड़ कटग्या 
गरमी बधगी
परदूसण है भारी
जण कुरळावै -
अब के आवैगी बरसात
साची ..
इयां के मरणदयै 
आ कुदरत आपां नै 
आपां इयां ई 
छोड़ दयां धीजो ।
दो
मानां कै छेकड़
बरसग्या बादळ
पण
इण स्यूं पैली 
कितणी ई आंख्यां
बरस‘र धापगी ।
तीन
बिरखा आवै ई कियां 
बिरखा नै बुलावणियां 
मोरियां नै तो आपां 
रैवण नीं दिया ।
 
	
	

