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आस्थाओं! न तुम डगमगाना कहीं / उर्मिल सत्यभूषण

आस्थाओं! न तुम डगमगाना कहीं
वक़्त की धार में खो न जाना कहीं

तेरी राहों में तपती हुई रेत है
पांव रखना मगर जल न जाना कहीं

बरगदी छांव उसकी है मोहक बहुत
देखना छांव में सो न जाना कहीं

तुम हो योद्धा तुम्हारी यही शान है
पीठ मैदान में न दिखाना कहीं

आस होगी तो इन्सां जियेगा जरूर
जीत होगी, न उर्मिल भुलाना कहीं।