{{KKRachna | रचनाकार=
आस्था के नाम पर ,
वह तंदरुस्त नौजवान,
चड़ जाता है,
यात्रियों से भरी ,
बस में ,
हाथ में लिए ,
किसी मिष्ठान की ,
छोटी टोकरी l
थमा देता है ,
कुछ दाने हाथ में ,
सभी सवारियों के ,
जिसे स्वीकार लेते हैं,
वह भी ,
बिना किसी प्रश्न के,
मात्र,
आस्था के नाम पर l
मगर क्या है ,
उसका प्रयोजन ,
नित्य दिन ,
ये सब करने का ,
क्या लीन है वह,
सच में ही,
ईश्वर भक्ति में इतना,
कि पहुँचाना चाहता है ,
भगवान का प्रसाद ,
जन - 2 तक ?
हर सवारी की जेब से ,
निकल जाता है ,
एक – दो, पांच या ,
फिर दस रुपये,
श्रध्दा स्वरूप ,
और रख देते हैं,
उसकी टोकरी में l
पुरे दिन इकठ्ठा किये ,
वो रुपये ,
खर्च नहीं होंगे ,
जन - कल्याण ,
या फिर किसी मंदिर के
जीर्णोद्वार या भवन
निर्माण में l
शाम होने पर ,
वह जाएगा ,
उसी दुकान पर ,
जहाँ से ख़रीदा था,
वह मिष्ठान उसने l
दे देगा जुटाई हुई ,
रेजगारी ,
दिन भर की ,
और ठूंस लेगा ,
कड़कड़ाते नोट,
जेब में l
यह है उस की ,
दिन भर की कमाई ,
अर्जित करता है,
जिसे वह ,
नाम मात्र के,
शारीरिक श्रम से l
वह नहीं समझता जरुरत ,
कठिन परिश्रम की ,
नहीं बहाना चाहता पसीना ,
किसी दिहाड़ीदार ,
मजदूर की तरह ,
चल रही है ,
उसकी आजीविका,
यूँ ही अनवरत,
महज,
आस्था के नाम पर |