भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आस्था - 23 / हरबिन्दर सिंह गिल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मानवता में आस्था
सिर्फ कवि रूपी
कोरी कल्पना नहीं है
अपितु
यथार्थ है
हर एक प्राणी का
जो लेता है, श्वास।

फरक सिर्फ इतना है
समय आने पर
श्वास, प्राणी से
नाता तोड़ लेती है
परंतु
मानवता समा लेती है
उस मृत काया को
अपनी ही श्वासों में।

सारांश में, मानव
मानवता के लिये
आती-जाती
श्वास से ज्यादा
और कुछ भी नहीं है।