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आस्था - 33 / हरबिन्दर सिंह गिल

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इस दुनियाँ में जब रात और दिन
मानव की गर्दन पर अनिश्चितता की
तलवार
लटक रही हो
और चारों तरफ
हिंसा नाच रही हो
तो कैसे कोई
शांति की सोच सकता है।

शायद आने वाली पीढ़ियों के लिये
शांति एक अतीत का
सपना बनकर रह जाए
कभी उनके पूर्वज रहते थे।
इसलिये क्यों न
सपनों की दुनियाँ में
जिया जाए
जहाँ बच्चे
देख सकें, आशा की किरण।