भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आस्था - 45 / हरबिन्दर सिंह गिल
Kavita Kosh से
यह सब शंकाएं
लेती रहेगी जन्म
मानव की आस्था
मानवता के लिये
नहीं हो जाती, स्थिर
क्योंकि
उसने अपनी पहचान को
धर्म के चिन्हों तक
कर सीमित
अपने स्वयं की पहचान को
कर दिया है, खत्म।
कितना अच्छा होता
धार्मिक पहचान के साथ-साथ
वो मानवता को भी
पहचानने की करता कोशिश
और देख सकता
कितनी खूबसूरत है, दुनियाँ।
परतु
शंकाओं के बादलों से
कब कहाँ
बरसा है पानी
जो पहुँचा सके, ठंडक।