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आस्था - 5 / हरबिन्दर सिंह गिल

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इन षडयंत्र रूपी फूलों को
हमेशा जोड़ा जाता है
समाज के उत्थान के साथ
ताकि मानवता का पतन
दृष्टिगोचर न हो सके
और इसके संयोजक अपने कलंक को
तिलक का रूप दे सकें।

कितना विचित्र खेल है
जो मानव
मानवता के साथ
खेल रहा है
अपने कलंक को
बेकसूरों के खून से
तिलक का रूप दे रहा है।

यह शायद
इसलिये हो रहा है
मानव ने, मानवता को
दूरदर्शिता की निगाहों से
कहीं दूर, बहुत दूर
छुपाकर रख दिया है।

यही कारण है
मेरी माँ-मानवता का स्वरूप
एक विशेष परिधियों तक
सीमित होकर रह गया है।