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आस्था - 77 / हरबिन्दर सिंह गिल
Kavita Kosh से
ओ रंग! तुम और महसूस नहीं कर सकोगे
ना ही तुम इतने भावुक रहोगे
क्योंकि तुम्हारी सभी भावनाएं
फैले हुए हड्डी के ढांचों में गुम हो जाएंगी।
ओ रंग! तुम भविष्य नहीं बता सकोगे
न ही तुम्हारा कोई वर्तमान होगा
क्योंकि तुम्हारा भूतकाल
आणविक सर्दी के तूफान में गुम हो जाएगा।
परंतु तुम इतने हताश न हो
अपनी शक्ति का पूर्ण उपयोग करो
और हर एक चीज में
इतनी जान डाल दो
मानव मानवता को वस्तु सोचना छोड़ दे।