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आस्था / शबरी / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
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की सुनै छी जानकी केॅ
राम्है वनवास देलकै,
ई कना होतै कि पुण्यैं
स्वर्ग रोॅ अभिशाप लेलकै!

जे कहै ई; झूठ बोलै
के करेॅ विश्वास यै पर!
मन तेॅ मरपा रं लगै छै
अपशगुन रोॅ धिनक-थै पर।

राम जों नररूप में छै
तेॅ हुनी सचमुच नरे की!
जे दिखै छै सामना मेॅ
की कहौं, ओकरोॅ परे की!

राम तेॅ मृत्यु-भुवन पर
देव रोॅ अवतार छेकै,
शून्य मेॅ सजलोॅ होलोॅ जे
तेज रोॅ संसार छेकै।

जिनका लेॅ कंचन सिंहासन
पात पीरोॅ पतझरोॅ के,
आरोॅ वन में वास करवोॅ
स्वर्ग-नाँखी; सुख घरोॅ के।

शील के, सौन्दर्य के जे
कोष छेकै शक्तियोॅ के,
ऊ केना ई काम करतै
वास जैमें भक्त्यिों के।

राम तेॅ सब रोॅ हितेषी
ऋषि-तपी के, शबरियोॅ के,
काठ सेॅ पत्थर तलक रोॅ
नर नै खाली, नारियो के।

याद छै हमरा ऊ सब्भे
जे कुमारा में गुजरलै,
कुछ कथा हेने ही छेलै
माँग हमरोॅ ई नैं भरलै।

जे कथा कोय्यो नै जानै
ई भरी पम्पापुरोॅ मेॅ,
राम कहले चललोॅ गेलै
सब कथा एक्के सुरोॅ मेॅ-

”हे शबरतनया, हे शबरी
के तोरोॅ रं छै दयामय,
वध-वधिक पर रोक लेली
छोड़ी ऐलौ विभव अक्षय।

”बस जेन्हैं केॅ जानलौ ई
होय वाला तोरोॅ पति जे,
छै शिकारी सौ में हेने
रोकी लै गतियो के गति जे।

”एक्के तीरोॅ सेॅ गिरावै
उड़तेॅ होलेॅ पाँच पंछी,
ई सुनी केॅ बोॅर लेली
बोललौ, ‘ऊ नर अधम; छी!’

‘सब पता छै हमरा तोरोॅ
ब्याह छोड़ी केॅ कथी लेॅ,
बांधलेॅ वैराग केॅ छौ,
आय तक होने जथी लेॅ।

”हे शबरतनया, हे शबरी,
पुण्य के तों दूतिका छोॅ,
आवै वाला देव-युग रोॅ
आचरण के सूतिका छोॅ।“

कान में गुंजलै सभे टा
राम के हौ मधुर बोली,
आ तखनिये चित्र दिखलै
ऐंतेॅ मनियो केरोॅ टोली।

सामना आवी ठिठकलोॅ
देखथौं विश्वास नै छै,
राम रोॅ अमृत वचन मेॅ
शबरी डूबै छै, बहै छै।

देखी केॅ मुनि आरनी केॅ
राम नेॅ हँसतेॅ कहलकै-
”ओकरा होने मिलै छै
जे जेन्होॅ मन सेॅ चहलकै।

”छोॅ मुनि पर ज्ञात नै छौं
ज्ञान सेॅ छै भक्ति भारी,
भक्तिये मोक्षो दिलावै
देखलौ कभियो विचारी!

”शबरी तेॅ धरती जकाही
सब करलकौं, सब सहलकौं,
की नै कहलौ, की नै करलौ
की शबरियों कुछ कहलकौं?

”ज्ञान ऊ पाखण्ड नाँखी
जे मनुज केॅ हीन समझेॅ
जे श्रद्धा के पात्र, ओकरौ
दीन आरो हीन समझेॅ।

”ज्ञानी होय के दम्भ भारी
वर्ण केरोॅ भेद मन में,
ई तेॅ पुर के विष छेकै जे
नै तेॅ वनवासी, नै वन में।

”ई तोहें अच्छा नै करलौ
शबरी केॅ तों हीन मानी,
यै लेली निर्मल सरोवर
दूषितो छौं ओकरोॅ पानी।

”कल खनी शबरी जेन्है केॅ
गोड़ रखथौं नील जल पर,
शुद्ध होंन्है केॅ दिखैतै;
ओस भोरे के कमल पर।

”ई बुझोॅ कि शबरिये के
भाव सेॅ हम्मेॅ खिंचैलोॅ,
हिन्ने पम्पापुर छी ऐलौं
भक्ति-बान्हन सेॅ बंधैलोॅ।

”जों नरोॅ में नारी लेली
मान नै सम्मान कोनो,
के कहै छै कि बसै छै
वै ठियां भगवान कोनो।“

सब पुरानोॅ बात विस्मृत
याद ऐलै, मोॅन विह्वल,
राम केरोॅ चरण पर छै
शांत फेनू चित्त चंचल।

लागलै शबरी केॅ हेने
राम ठाढ़ोॅ सामना छै,
आरो ऊ छै हाथ जोड़ी
कुछ मनोॅ मेॅ कामना छै।

नील मेघे नररूपोॅ मेॅ
राम के छै रूप हेन्होॅ,
या तराशी केॅ बनैलोॅ
नीलमें पत्थर केॅ जेन्होॅ।

रूप सेॅ छिटकै प्रभा की
सूर्य के ही किरिन फूटै!
देवथौ केॅ जे छै दुर्लभ
आय छवि वन-प्रान्त लूटै।

दृश्य फेनू सब पहिलकॉे
राम वनवासी छै सम्मुख,
उपटै छै शबरी के सुख टा
भाँसले जाय भ्रान्ति रोॅ दुख

बोललै शबरी मनेमन-
”राम तों अवतार छेकौ,
शून्य पर सजलोॅ होलोॅ
अपरूप के संसार छेकौ!

”मोॅन नै मानै छै हमरोॅ
हमरे गोड़ोॅ के परस सेॅ,
शुद्ध होलै ई सरोवर
जे दूषित सालो-बरस सेॅ।

”राम, तों अपने चरण सेॅ
शुद्ध करलौ छूवी जल केॅ,
जोड़लोॅ हमरोॅ कथा सेॅ
कीर्ति-यश अपनोॅ विमल केॅ।

”धूल चरणोॅ के तोरोॅ की?
सृष्टि भर ई बात जानै,
शुद्ध हमरा सेॅ सरोवर
बात ई नै मोॅन मानै।

”राम तोरोॅ चरित सुनथै
के यहाँ नै मुक्त होलै,
मुट्ठी में सुख-स्वर्ग लै केॅ
भार कत्तेॅ छै; टटोलै।

”आय सार्थक रंत्र लगै छै
जिनगी रोॅ सन्यास के सुख,
राम तोरोॅ दर्शने तेॅ
मोक्ष संग कैलाश के सुख।

”दुख वही दिन दूर छेलै
जे दिना कि पूज्य ऋषिवर
मुनि मतंगश्री ई कहलकै-
‘राम ऐथौं तोरोॅ कुटि पर।’

”बस वहा दिन सेॅ तेॅ हम्मेॅ
ई प्रतीक्षा मेॅ ही छेलां,
कुल कहाँ हमरा पता छै
कौनेॅ की देलकै? की लेलां।

”राम हमरोॅ द्वार पर छोॅ
देवता रॉे स्वर्ग फीका,
आय माँटी भाल पर छै
मुक्ति केरोॅ तिलक-टीका।

”राम, हम्में शबरतनया
भय नै हमरा कोनो कुछुओ,
दैत्य, मानव, असुर आ सुर
दायां-बायां आगू-पिछुवो।

”हर किसिम के संकटोॅ लेॅ
तीर के सब कला जानौं,
पर जरूरत ही नै पड़लै
धनुष केॅ लै कभियो तानौं।

”ई भयानक ठो वनोॅ मेॅ
डोॅर तेॅ लगवे करै छै,
रातकोॅ गुजगुज अन्हरिया
आँख राकस रोॅ जरै छै।

”पर हटैलेॅ डोॅर-भय केॅ
छी अडिग आपनोॅ धरम पर,
राम, तोरोॅ भक्ति पर जों
ओतनै अपनोॅ करम पर।

”जानकी के हरण सुनलां
तेॅ प्रभु कुछ तीर हेन्हो
छी बुतैलेॅ, जे कहूँ नै
रावणो लुग छै नै जेन्हो।

”सब विपद लेॅ बाण ई तेॅ
जे बनैलेॅ राखलेॅ छी,
मृत्यु केरोॅ जे बराबर
झूठ कुछ नै भाखलेॅ छी।

”वाण, जेकरा पावै लेली
रावणो के मोॅन छेलै,
लै दशानन-भेष अपनोॅ
यै ठियां आबी धमकलै।

”हम्मू धोखा खाय गेलियै
दसमुँहे सचमुच छिकै की,
हार हीरै के ऊ माया
झूठ कटियो टा दिखै की!

”भेष कोय्यो कत्तोॅ बदलेॅ
आचरण केना बदलतै,
हावोॅ-भावोॅ सेॅ तुरत्ते
भेद ओकरोॅ तेॅ निकलतै।

”शांति केॅ बिन कारणे जे
भंग चाहै छै करै लेॅ,
ओकरा सतकर्म हाथें’
लागतै निश्चित मरै लेॅ।

”वाण शोभै छै नरी केॅ
जे दया-ममता मेॅ रत छै,
ओकरे रक्षा में बेमत
न्याय पर टिकलोॅ जे सत् छै।

”पाप के सिर वाण बेधेॅ
तेॅ जरो टा पाप की छै,
जों अकारथ प्राण लै छै
पाप अतिशय वैं छै बीछै।

”जे निछी केॅ राखलेॅ छी
राम तोरा वाण अर्पित,
नारी-रक्षा लेॅ जे उद्धत
वाण ओकरै छै समर्पित।

”जों कजैते काम आवेॅ
तेॅ समझवोॅ श्रम सफल छै,
हे नरोत्तम राम, जानौं
तोरा मेॅ तेॅ आय-कल छै।

”युगपुरुष हे राम नरपति
छौ जना बेकल सिया लेॅ,
केकरौ नै पैलां हेनोॅ
भ्रान्त सचमुच मेॅ प्रिया लेॅ।

”जे सिया लेॅ हट्टो-हट्टो
जंगलोॅ के खाक छानै,
ऊ प्रिया सच्चे सुहागिन
स्वामी जेकरा हेनोॅ मानै।

”राम तोरोॅ ई चरित सेॅ
जे किसिम पुलकित धरा छै,
कल खना सतयुग जे ऐतै
तोरे ही तेॅ आसरा छै।

”नारी के सम्मान लेली
जे विकल; ऊ राम छेकै,
एक पत्नीव्रत नियम पर
जे अटल; ऊ राम छेकै।

”जे निछी केॅ राखलेॅ छी
राम तोरा वाण अर्पित,
नारी-रक्षा लेॅ जे उद्धत
वाण ओकरै छै समर्पित।

”जों कजैते काम आवेॅ
तेॅ समझवोॅ श्रम सफल छै,
हे नरोत्तम राम, जानौं
तोरा मेॅ तेॅ आय-कल छै।

”युगपुरुष हे राम नरपति
छौ जना बेकल सिया लेॅ,
केकरौ नै पैलां हेनोॅ
भ्रान्त सचमुच में प्रिया लेॅ।

”जे सिया लेॅ हट्टो-हट्टो
जंगलोॅ के खाक छानै,
ऊ प्रिया सच्चे सुहागिन
स्वामी जेकरा हेनोॅ मानै।

”राम तोरोॅ ई चरित सेॅ
जे किसिम पुलकित धरा छै,
कल खना सतयुग जे ऐतै
तोरे ही तेॅ आसरा छै।

”नारी के सम्मान लेली
जे विकल; ऊ राम छेकै,
एक पत्नीव्रत नियम पर
जे अटल; ऊ राम छेकै।

”जे हृदय प्राणेश्वरी मेॅ
छै अटल, ऊ राम छेकै,
नारिये नाँखी हुएॅ जों
आँख छलछल; राम छेकै।

”राम तोरोॅ शील आगू
की छै कुछुवो,
राम तोरोॅ नील आगू
की छै कुछुवो!

”ताम्रवर्णी रावणोॅ के
भावो कारोॅ,
मारलोॅ मति; गोबरोॅ पर
घी केॅ ढारोॅ।

”रावणोॅ के रूप-शक्ति
सब वृथा छै,
ज्ञान आरो भक्तियो की
जों अथा छै!

”नारी के विश्वास-लज्जा जे हरै छै,
मुक्ति मिलतै की? ऊ जीतेॅ जी मरै छै।

”नारी के अपमान छेकै:- पप फुटवोॅ,
ओखरी मेॅ मूड़ी राखी धांय कुटवोॅ।

”लोर आँखी सेॅ त्रिया के
जों गिरै छै,
आवै वाला काल केरोॅ
कल डरै छै।

”समय पुरथैं जे किसिम सेॅ
काल आवै,
मत्त गज केॅ घेरलेॅ जों
जाल आवै,

”प्राण फन्दा मेॅ फँसैतै
रावणोॅ के,
सागरो जानै छै कुव्वत
जलकणोॅ के।

”दोख माथा पर मणि रं
जों विराजेॅ,
पाप जेकरोॅ ढोल नाँखी
खूब बाजेॅ।

”ऊ भला केना केॅ होतै
पुण्यकामी!
चुप भला केना केॅ रहतै
लोकस्वामी!

”तों सती-सम्मान लेली
ही कुपित छोॅ,
लाज के रक्षाहै लेॅ तेॅ
तों उदित छोॅ।

”सब चुकेॅ, पर वाण पाँचो
ई नै चुकतै,
लक्ष्य के पहिलें कहूँ ठां
ई नै रुकतै।

”पत्थरोॅ के भीतरो तक
जाय बैठे,
नोक घुसथैं तिलमिलावै
गिरियो ऐंठै।

”राम, तोरे वास्थैं हम्मेॅ जोगैलेॅ
पुण्य रोॅ ई पाँच फल छाती लगैलेॅ।

”धन्य होतोॅ
पुण्य हमरोॅ
जों फरेॅ तेॅ,
पाप जतना छै धरा पर
सब जरेॅ तेॅ!

”राम तोरोॅ
कार्तिये-यश
सूर्य छेकै,
नारी केॅ ढाढस बंधैतेॅ
तूर्य छेकै।

”जे हेनोॅ बेकल प्रिया लेॅ
देवता ऊ,
सूर्य ग्रसतै की केन्होॅ केॅ
कुटिल राहू!

”सूर्यवंशी राम तोंहे
पूर्ण सक्षम,
जे तोरोॅ शत्रु बनै छै
ऊ नराधम।

”इन्द्र के देलोॅ होलोॅ जे
धनुष धारौ
सूर्य नाँखी वाण लै केॅ
खल संहारौ;

”नारी हरवैया दशानन
ध्वस्त होतै,
स्वर्णलंका के किरिन के
अस्त होतै।

”देखी रहलोॅ छी सरंग सें
खून बरसै,
जे गिरै छै रावणोॅ पर
मृत्यु सरसै।

”रक्तरंजित स्वर्णलंका
जों पलाशे,
काल केरोॅ फेंकलोॅ जों
निठुर पाशे।

”जे दशानन के डरोॅ सेॅ
के नै थरथर,
गिद्ध ओकरे पर उड़ै छै
आय ऊपर।

”कानै छै सोॅ-सोॅ सियारो
एक साथें,
रावणोॅ के मृत्यु लिखलोॅ
तोरे हाथें।

”जो त्रिया लेॅ एतेॅ चिन्तित
छोॅ तपस्वी,
देवतै छेकौ धरा पर
हे यशस्वी!

”राम तोरोॅ यश लिखावौं
तेॅ यहीं सेॅ,
बिन सिया कुछुवो नै सुन्दर
कुछ कहीं सेॅ।