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आस के शामियाने को ताने चला / अविनाश भारती
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आस के शामियाने को ताने चला,
आदमी चाँद पर घर बनाने चला।
कैस लैला से उल्फ़त निभाने चला,
जान अपनी भला क्यूँ गँवाने चला।
चेहरे पर जोकरों-सा मुखौटा लिए,
बाप मेरा खिलौना कमाने चला।
सच परेशान है पर पराजित नहीं,
बात झूठी है ये, मैं बताने चला।
सेमरी दूर है, दिल्ली के राय से,
अपने दुखड़े को होरी सुनाने चला।
छीन 'अविनाश' मुँह से निवाला मेरा,
ये ज़माना मुझे आजमाने चला।