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आस / शान्ति प्रकाश 'जिज्ञासु'
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कैन फूल इलै नि बुतनी
बरखा अब हो न हो
मिन् त फूल बूत देनी
बरखा अब तू हो न हो ।
लोगुन् डाळा इलै नि लगैनी
यूंका फल हम खां नि खां
मिन् त डाळा लगै देनी
यूंका फल मि निखौं त क्वीत खावु।
दुख मा कैका क्वी नि जांदू
वेकै जान्दु जू कै का औ
मित सब्यूं का दुख मा जांदू
मेरा दुख मा क्वी औ नि औ ।
कैऽन कटनी किनगोड़ा कांडा
अपड़ी पुगड़ी छंटैनी द्वी
मिन वु कांडा स्वैर देनी
बैठु न कैका खुट्टा पर क्वी ।
लोगुन् बाठा इलै छोड़नी
सड़क बणजाली अब सही
मिन् वु बाठा इलै बटैनी
बिरड़ नि जाऊ क्वी बटोई।
मि भी चल्यों बटोयूं दगड़ा
सब्यूंन पकड़ी सौंगी सार
भाग कु रस्ता मिलु न मिलु
मित् नपणू रयौं उकाळ ।