भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आह! ये बारानी रात / मुनीर नियाज़ी
Kavita Kosh से
					
										
					
					आह! ये बरसाती रात 
मींह, हवा, तूफ़ान, रक़्स-ए-सायेक़ात 
शश-जहत पर तीर्गी उमड़ी हुई 
एक सन्नाटे में बज़्म-ए-हदसात 
और मेरी खिड़की के नीचे 
काँपते पेड़ों के पात 
चार सू आवारा हैं 
भूले बिसरे वाक़यात 
झक्कड़ों के शोर में 
जाने कितनी दूर से 
सुन रहा हूँ तेरी बात 
[सायेक़ात= चमक] 
[शश-जहत= छ दिशाएँ] 
 
	
	

