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आह! ये बारानी रात / मुनीर नियाज़ी

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आह! ये बरसाती रात
मींह, हवा, तूफ़ान, रक़्स-ए-सायेक़ात
शश-जहत पर तीर्गी उमड़ी हुई
एक सन्नाटे में बज़्म-ए-हदसात
और मेरी खिड़की के नीचे
काँपते पेड़ों के पात
चार सू आवारा हैं
भूले बिसरे वाक़यात
झक्कड़ों के शोर में
जाने कितनी दूर से
सुन रहा हूँ तेरी बात
[सायेक़ात= चमक]
[शश-जहत= छ दिशाएँ]