आहटें सुनकर शरद की
मुस्कुराती भोर आई।
स्वर्ण-घट को शीश धरकर
थाल में रोली सजाए
कर रही श्रृंगार, हरसिंगार-
को धरणी बिछाए
पाँव आलक्तक लगाए
खिलखिलाती भोर आई।
स्वस्तिवाचन कर रहे हैं
सामध्वनि से कंठ कूजित
नवल पल्लव नव कुसुम औ
नव किरण से पंथ पूजित।
माँग कुंकुम से सजाये
दिपदिपाती भोर आई।
ओस बूंदों से सुसज्जित
दूब की हरियल अनी
रात ने नभ से बिखेरी
आज हीरे की कनी।
सरित-सर में प्राण भरकर
झिलमिलाती भोर आई।