आहत भावनाओं का युग / असद ज़ैदी
आहत भावनाओं के इस युग में
बहुत सी भावनाएँ आहत होने से इनकार कर देती हैं
होश नहीं खोतीं ज़्यादा कड़ा वक़्त पड़ता है
तो भूमिगत हो जाती हैं
इस तरह जून गुज़र जाता है सितम्बर आ जाता है
एक नई भाषा बनने लगती है, आहत भावनाएँ
मंच सम्भाल लेती हैं, अपनी हिन्दी
फिर नई चाल में ढलने को आतुर हो जाती है
गठन होना ही है अब इस देश में
आहत भावनाओं के राज्य का – राष्ट्र ऐसे ही बनते हैं
खून और वीर्य और उबकाई से
जन ऐसे ही उत्प्रेरित होते हैं, नागरिकता
ऐसे ही विकासमान
आहत वीर चुनाव जीत जाते हैं अब वे सत्ता में हैं
प्रधानमंत्री उनका है उनके पास गृह मंत्रालय है
शिक्षा, संस्कृति, सूचना और प्रसारण के महकमे उनके हैं
एक बौद्धिक
दुधमुँहे बच्चे की आतुरता से खोजता है
जातीयता का स्तन
चश्मा उतार देता है आँखें मूँद लेता है
आधा दूध छलक कर बाहर गिरता है
आधा जाता है पेट में
उसकी जेब में रहते हैं दो रूमाल
विलुप्त सरस्वती का पाट चौड़ा होने लगता है
उसका पानी अब पहुँच रहा है अरब सागर तक
और हड़प्पाकालीन गेंडा ऋग्वेद के अश्व में बदल जाता है
जो भावनाएँ आहत नहीं थीं जो विमर्श के परे थीं
जानकर कि वक़्त ऐसा ही है कभी इधर दिख जाती हैं
कभी उधर, कुछ चिंतित कुछ आश्वस्त, उन्हें एक दूसरे का
ठीक-ठीक पता नहीं उनमें क्या ताक़त है इसका अन्दाज़ा
किसी को नहीं उनकी मर्दुमशुमारी कब से नहीं हुई
उनका आधा मन दिल्ली में है आधा नेपाल में
उनकी निगाह रहती है फ़िलस्तीन पर
कभी वेनेजुएला पर और अभागे सोमालिया पर
एक नाउम्मीदी है जिसके हैं कई सौ नाम : बसरा और बग़दाद,
काबुल, बल्ख़ और क़न्धार, मुम्बई, नई दिल्ली और इस्लामाबाद
जहाँ-जहाँ पड़ती है उम्मीद की परछाईं वहाँ वहाँ
वे भटकती फिरती हैं बराबर से तत्पर और उचाट
वे सोचती हैं यह कैसा लोकतन्त्र है कैसा द्वन्द्ववाद
कि आप लोगों से उनका अतीत छीन लें उन्हें कोई भविष्य दिए बग़ैर
उनसे ज़मीन ले लें और कुछ पैसे दे दें
इस देश के आसमान में उड़ती चीलें क्या हुईं
एक क़स्बा होता था हरसूद कहाँ गया
क्या हुआ आज़ादी की वेला में नियति से मिलन का
क़िस्मत से उस वादे का
तुम्हें मालूम है उन्होंने कौसर बानो के साथ क्या किया
राष्ट्र-निर्माताओं और लौहपुरुषों की रौंदी हुई इस ज़मीन पर
अगली फ़सल कैसी होगी कौन उसे सम्हालेगा
किस अदालत में उन महापुरुषों पर मुक़दमा चलेगा
गवाह कौन होंगे किस सदी में जाकर होगा फ़ैसला
किस भाषा किस लिपि किस माध्यम में उसे दर्ज किया जाएगा
वह लिपि मौजूद है या उसका भी निर्माण बाक़ी है
(2010)