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आहूति / असंगघोष
Kavita Kosh से
अपने ही रचे
प्रपंची ग्रंथ-शास्त्रों से
धर्म का रास्ता
पकड़ कर
तुमने!
समाज में अपनी पैठ बना ली
इन्हें बैसाखी बना
तुम बन गए
धर्म के सर्वेसर्वा
तेरा यही धर्म
मेरा दुश्मन हो गया,
इन्हीं ग्रंथों में
तूने रचा वर्ण
और कालान्तर में
बना दी जातियाँ
जो कमबख्त!
रची बसी हैं
तेरे समाज में।
इस धर्म को नकारने
इसका मोह त्यागने
किसी ना किसी को
करनी ही होगी पहल
फिर मैं खुद ही
क्यों ना करूँ
यह पहल
लो मैं ही
सबसे पहले
अपने पुरखे
आदिकुरील
की तरह
मूतता हूँ
तेरे ग्रंथों पर