भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आह्वान / कनक लाल चौधरी ‘कणीक’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पैल्हकोॅ लिखलोॅ गैल्हौं मेटाय,
फेरू से लिखैं लेॅ पड़थौं हो भाय!

पुरूब दिशोॅ सें सुरूज उगैलै-बेटा करण के राजोॅ सोहैलै
पूर्वी बोलीं शोर मचैलकै, पुरवैय्या झोकां सगरो घुमैलकै
अंग, मगध काशी, विज्ज, कौशल, सूरसेन, कम्बोज, कुरू, भल्ल,
जेहि, अयस्क, भत्सल पांचाल, वत्स, अवन्ति आरो गान्धार
षोड्स महा जनपदोॅ में सेंसर, बोली अंगोॅ के सभ्भै सें जब्बड़
सभ्भै के बीच पुरवैय्या जे बोलै, कानोॅ में पिरियोॅ अमरित घोलै
पुरवैय्या धुनोॅ पे थिरकै जहान, अंगोॅ के धरती बड्डी महान
शृंगी औॅर शान्ता के परिणय गीत, कर्णे ने पेलकै जहाँकरोॅ संगीत
तखनी यै बोली के बड्डी परचार, सुनै रहै सगरो सें सौंसे संसार
देलकी विशाखा ने बुद्धो रोॅ शिक्षा, चन्दन वालां लेलकी महावीरी दीक्षा
चानोॅ बणीकोॅ कन बिहुला जे अैलित, अंगोॅ के धरती केॅ सुवर्गे बनैलकीत

छठमी सदी के बड़की चढ़ाय,
चौसठ में चौठो ठो बोली गिनाय। पैल्हकोॅ।

पाणिणी-वामनें देलकै मान, प्राच्या में भेलै बोली रोॅ सम्मान
आर्यावत्तोॅ में फूलोॅ खिलैलकै, तखनी यै बोली ने नामोॅ कमैलकै
बड्डी धनी रहै एकरोॅ भंडार, कोइयो नै पावै एकरोॅ पार
गोपीचन-गोरख के झांझड़ बाजै, विद्यापति जहाँ ऊगना केॅ खोजै
सरहपाद, सबरप्पा सभ्भे लिखन्नर, कन्हप्पा, चम्पप्पा नामी धुरंधर
दशमी सदी तालुक खुव्वै है फललै-अतिश दीपंकरोॅ के साथें भी चललै

वख्तियारोॅ खिलजी के भेलै चढ़ाय,
सभ्भै लिखलका केॅ देलकै जराय।।पैल्हकोॅ।।

विक्रमशिला ठो जखनी ढहैलकै, प्राच्या ओॅ पाली के लेखभौ भेटैलकै
नादिर लुटेरां लुटी-लुटी लेलकै, जालिम चंगेजवॉ ने नद्दीं वहैलकै
तिब्बत औॅ चीनोॅ के रहै जे ‘भिखुवा’ ओकरा सुतरलै किताब कुछु लिखुवा
लैकेॅ कितव्वा हौ फेनू परैलै, अंगोॅ के धरती के जानोॅ पे अैलै
चारो तरफें लूट-मारहै के खेला, निर्दय निर्लल्लू के बोलम बोला
नादिर औॅ गजनी संे जान वचाबै, हुम्मा के नामोॅ पे बच्चा डराबै
कौने जोगतियै मैय्या के बोली? बेटवा परैलै मैय्या अकेली

जान लै लै सभ्भे गेलै छितराय,
माय केॅ वेटवां गेलै विसराय।।पैल्हकोॅ।।

लूट-पाट अैला पैन्हें, पालीं सतैलकै, विक्रमशिला सें माय के हटैलकै
लुटेरां आबी के गातियो पुरैलकै, अरबी औॅ फारसी के तालिम चलैलकै
पाली केॅ बोढ़ी केॅ साफोॅ करलकै, बंगला संस्कृथौ केॅ कम नैं सतैलकै
आखिर में भाषा के होलै लड़ाय, वीच्है में उर्दू के होलै पढ़ाय
उर्दू के खिचड़ी सें हिन्दी निकललै, संस्कृत के छिट्टा सें खुव्वे पनपलै
प्रेमचन्दे खिचड़ी वाला हिन्दी चलैलकै, जयशंकरें छिट्टावाला बोली बढ़ैलकै
अंगोॅ के धरती के मिटलै पहचान, बोलिया नुकैलै होय के बेजान

कन्हौं से कोय नैं रहलै उपाय,
बंगला के अचरा में गेली नुकाय।।पैल्हकोॅ।।

आपन्है ठो घरबा में बंगला पोसलकी, शरद बनफूलोॅ सें झोरी भरलकी
बंगला ठो पोसी केॅ खुब्बे सजैलकी, हिन्दी के धारा में धोंस फेनू देलकी
हिन्दी में दिनकर रङ देलकी सपूत, रेणू, द्विज कैरब रङ उपजैलकी पूत
अधमरूवोॅ जान लेनेॅ चेहरा छिपैलकी, बेटवा चिन्हभाय खातिर जतनोॅ करलकी
हिन्दी के धारा में बहले ठो जाय, आपन्हैं सपूतवा सें नहियें चिन्हाय
दशमी सदी सें बीसभी तक वहली, अनचिन अवस्था में हिन्दी में ढुकली
आपन्है ठो धरती के लोगवा जे भूललै, बोलै छै कोॅन बोली? राजोॅ नैं खुललै
अैलै कन्नेॅ से बोली? कोइयो नैं बूझै, लोरी, छठियौरी के गीतभौॅ नैं सूझै
तिब्बत सें घुरी केॅ अैलै घुमक्कड़, जेकरा कहै सभ्भैं हिन्दी के फक्कड़
राहुल जी छेलात लाल बुझक्कड़, जिनकोॅ नजर छेल्हैन एकदम्हैं सक्खड़
पअना मंे तखनी साल रहै छप्पन, गोष्ठी में ढुकलै राहुल सांकृत्यायन

राहुल के नजरोॅ में गेली चिन्हाय
छाँकी के नाम मिललै ‘अंगिका माय’।।पैल्हकोॅ।।

हुकुर-हुकर जान लेने जखनी छनैली, राहुल इशारां सुधांशु लग गेली
लक्ष्मी-अम्वष्ठें परवस्ती गछलकै, राहुल के कहला पे परिषद बनैलकै
तखनी सें माय केॅ जे मिलले सम्मान एख्है घुमक्कड़ें दिलबाय देलकै मान
आरती उतारै लेॅ जुटलै महेश, माय के पुजाय लेली देलकै सनेश
पूजा बरत लैकेॅ खाढ़ोॅ जे भेलै, आपन्है ठो चटिया से पुजवैने गेलै
माइये के बोली महेशें अपनैलकै, देशोॅ विदेशोॅ में बोलिया गिनैलकै
चढ़ेॅ लागलै फेनू माय केॅ ढ़ेरी परसाद, बेटवा भुलक्कड़ोॅ के आबेॅ लागलै याद
आबेॅ तेॅ माय केॅ सभ्भैं चिन्हेॅ लागलै, अंगोॅ के धरती के भाग फेनू जागलै
कुशवाहा, सूरोॅ, समीर अमरेन्दर, मधुकर चकोरें लगावै छै दयर
सभ्भै लिखवैय्या के लम्हर कतार, खुब्बे सजेॅ लागलै माय के दुवार
राम आश्रय कुलपति गुण सभ्भै गावै, राहुलें चिन्हाबै तेॅ कुलपति-पुजावै
दौड़ी धूपी केॅ जे धरती सुंघलकै, अलघै विभागी के रस्थौ बनैलकै

एम.ए. सें चलबैलकै माय के पढ़ाय
कस्सी के सभ्भे लाग्हौ हो भाय
फेनू नें माय ठो जाहूं हेराय
जागी केॅ सभ्भैं जोग्हो हो भाय।।पेल्हकोॅ।।