आह, वो ख़ूबसूरत बान्धवियाँ / येव्गेनी रिज़निचेंका / अनिल जनविजय
आह, वो तितली सी सुन्दर, भोली-भाली बान्धवियाँ
आह, वो नन्हे पैरों व कजली आँखों वाली जाह्नवियाँ
अभी नई-नई हैं, ख़ाली पड़ी हैं, ये ख़ूबसूरत इमारतें
पुरानी परीकथाओं की हैं जैसे, एकदम नई इबारतें
ओह, ये डरी हुई सी बेख़बरी औ’ घबराया अनजानापन
चेहरे पे एक मुखौटा-सा है, आकुल-व्याकुल सा है यौवन
बारीक और महीन बुनाई के घूँघट से ढका हुआ चेहरा
और गुस्से में जो प्यार छुपा, है वही रति का पंचशर घेरा
मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय
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लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
Евгений Резниченко
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Ах зти милые созданиья
Ах эти ножки эти глазки
Ещё необжитые зданья
Отреставрированной сказки
Ах это робкое незнанье
Своей ненастояшей маски
Ах это тонкое вязанье
Переплетённой злостью ласки
К себе и ко всему живому
Забывшему дорогу к дому
Где ждут ревнивые мужья
на всё взирающие слепо
С ружьём и чувством: -- Вот уж я!..
А хочется любить нелепо.
1991