भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आ... रा... रा... रा... रा... रा...! / रमेश तैलंग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

टिक-टिक, टिक-टिक
टिक-टिक, टिक-टिक
टिक-टिक बोले घड़ी मेरी,
घड़ी में बज गए बा...राकृ।
आ...रा...रा...रा...रा...रा...!

बारा बजकर पाँच मिनट पर
खाएँगे हम सब खाना,
बारा बजकर बीस मिनट पर
सब के सब चुप हो जाना,
बारा बजकर तीस मिनट पर
फूटेगा गुब्बा...रा।
आ...रा...रा...रा...रा...रा...!

घड़ी की टिक-टिक बता रहा है
चिक-चिक, चिक-चिक मत करना,
ठीक समय पर रात को सोना
ठीक समय सुबह जगना,
समय को साधा जिसने, उसकी
मुट्ठी में जग सा...रा।
आ...रा...रा...रा...रा...रा...!