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आ अधरों पे तू ही तू है / शैलेन्द्र सिंह दूहन
Kavita Kosh से
हर मौसम की तू खुशबू है।
आ अधरों पे तू ही तू है।
तुझ बिन निश-दिन गहन तमी है
सब कुछ पाकर बहुत कमी है,
शीतल पुरवा छेड़े मुझ को
रूठा चुम्बन बे काबू है।
आ अधरों पे तू ही तू है।
साँसों की शहनाई सूनी
यादों की गर्माई सूनी,
टूटे सपने बिन ब्याहे सब
बहका-बहका हर आँसू है।
आ अधरों पे तू ही तू है।
सावन –फागुन आग लगाए
बैरन कोयल गीत सुनाए,
आहें भर-भर सिसके यौवन
कैसा पतझड़ ये लागू है।
आ अधरों पे तू ही तू है।
चिड़ने और चिड़ाने आजा
मुझ को और सताने आजा ,
प्रेम सुधा बरसाने वाले
नस-नस में तेरा जादू है।
आ अधरों पे तू ही तू है।
नज़र नजारा घूँघट तुम हो
भँवर किनारा केवट तुम हो,
हर भाषा के भाव नवल तुम
क्या हिंदी है? क्या उर्दू है?
आ अधरों पे तू ही तू है।