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आ गई मंज़िलें-मुराद, बांगेदरा को भूल जा / आरज़ू लखनवी

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आ गई मंज़िले-मुराद, बाँगेदरा को भूल जा।
ज़ाते-खु़दा में यूँ हो महव, नामे-ख़ुदा को भूल जा॥

सबकी पस्न्द अलग-अलग, सबके जुदा-जुदा मज़ाक़।
जिसपै कि मर मिटा कोई, अब उस अदा को भूल जा॥