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आ गई है रात / त्रिलोचन

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आ गई है रात, उठो दीप जला दो


व्योम में तारे निकल आए

भूमि पर तम, घन अचल छाए

खो गए सब है

मौन ही अब है

तोड़ कर यह बंध, प्रभा एक कला दो


कौन साथी किस जगह छूटे

स्वप्न मन के किस तरह टूटे

बात बीत गई

करो जीत नई

हिम तिमिर निस्तब्ध, इसे शीघ्र गला दो


ज्योति पथ पर प्राण चलते हैं

ज्योति में विश्वास पलते हैं

ज्योति वृत्त बना

प्राण की रचना

फिर करो संकल्प, रुका यान चला दो

(रचना-काल - 01-11-48)