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आ जाण र / सांवर दइया
Kavita Kosh से
आ जाण र
करड़ा राजी हुया म्हैं
चर्रड़-चूं सूं छूट
करण लाग्या हवा सूं बातां
मिलाया नम्बर
अर कर ली बात
बीं खूणै
अर अबै तो
बक्सै सांमै बैठ
देखां-सुणा
आखै जगत री हलगल
दो घर छोड़ र कुण रैवै
बूढै मां-बाप रै कांई है सोरप-दोरप
सगा-परसंगी कठै-किंयां है
आ जाण र
कांई करणो है म्हानै !