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आ जायें हम नज़र जो कोई दम बहुत है याँ / मीर तक़ी 'मीर'

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आ जायें हम नज़र जो कोई दम बहुत है याँ
मोहलत बसाँ-ए-बर्क़-ओ-शरार कम बहुत है याँ

यक लहज़ा सीना कोबी से फ़ुरसत हमें नहीं
यानि कि दिल के जाने का मातम बहुत है याँ

हम रहरवाँ-ए-राह-ए-फ़ना देर रह चुके
वक़्फ़ा बसाँ-ए-सुबह् कोई दम बहुत है याँ

हासिल है क्या सिवाये तरै के दहर में
उठ आस्माँ तले से के शबनम बहुत है याँ

इस बुतकदे में मानी का किस से करें सवाल
आदम नहीं सूरत-ए-अदम बहुर है याँ

अजाज़-ए-इसवी से नहीं बहस इश्क़ में
तेरी ही बात जान-ए-मुजस्सिम बहुत है याँ

मेरे हिलाक करने का ग़म है अबस तुम्हें
तुम शाद ज़िंदगानी करो ग़म बहुत है याँ

शायद के काम सुबह् तक अपना खिंचे न 'मीर'
अहवाल आज शाम से दरहम बहुत है याँ