भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आ बैठ बात करां - 9 / रामस्वरूप किसान

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आ बैठ
बात करां

आंतरौ भानां
नैड़ै आवां

जुगां रौ
उळझ्योड़ौ सूत
सुळझावां

तीर तो
घणां ई छूट्या
कमाण सूं

इत्ता कै
इब तो
लोही ईज
रैयग्यौ आण सूं

आ, बात नै साधां
एक-दूजै रै
पाटा बांधां
पीड़ हरां

आ बैठ
बात करां।