आ मेरि जान कभी प्यार की पहचान में आ / नसीम अजमल
आ मेरि जान कभी प्यार की पहचान में आ ।
तू अगर शोला है तो दीदा-ए-हैरान<ref>आश्चर्यचकित आँखें</ref> में आ ।
मुस्कुराता हुआ तू चाँद सितारों से निकल
और हँसता हुआ भूले से कभी जान में आ ।
तश्नगी ठहरी बुझाना तो बयाबाँ<ref>रेगिस्तान</ref> पे बरसा
गोद में माँ की उतर, धरती के पिस्तान<ref>वक्ष</ref> में आ ।
दश्त-ए-वहशत<ref>वहश्त और जंगल</ref> से मेरि इस क़दर आसाँ न गुज़र
छोड़ आँखों को मेरि, दस्त-ओ-गिरेबान<ref>हाथ और गिरेबान</ref> में आ ।
क़तरा-क़तरा मेरि आँखों से मेरे दिल में उतर
रफ़्ता-रफ़्ता मेरे सीने से मेरि जान मॆं आ ।
शोरिश-ए-जाँ<ref>जान का हंगामा</ref> से मेरि ऐसे न कतरा के गुज़र
मेरी साँसों का मज़ा ले, मेरे हैजान<ref>कोलाहल</ref> में आ ।
बर्ग-ए-आवारा<ref>उड़ता हुआ पत्ता</ref> पे ही लिख दे हिकायत<ref>कहानी</ref> अपनी
आ मेरि जान कभी हर्फ़-ए-परेशान<ref>परेशान शब्द</ref> में आ ।
देख ले अपनी ख़ुदाई का तमाशा ख़ुद ही
आस्माँ वाले कभी पैकर-ए-इंसान<ref>इन्सानी आकृति</ref> में आ ।