इंजीनियर के लिए कविता / एल्विन पैंग / सौरभ राय
ये कविता दुनिया बदलने का इरादा नहीं रखती
न उसे रत्ती भर हिलाना चाहती है;
यह काम विज्ञान का है – विमान शास्त्र, सिविल इंजीनियरी
इन्हें ज़रुरत है हुनर की, पैसे, इन्तेज़ामातों की
ये बेहिसाब रातें जाग, मेज़ पर गिरे ढाँचों की मरम्मत करते
अपने छोटे से कमरे में। कोण जाँचते, ऊँचाई नापते, गिनती में मशग़ूल
ताकते शाफ़्ट, रोटर और नक़्शों की तरफ़।
पत्नी नींद में ग़ुम है, कुत्ता जी बहला रहा है
चाँद के दरमियान आसमान को करवट बदलता देख।
यह मुश्क़िल काम हैं। नज़्मों को क्या मालूम
ऊर्जा, बल और तनाव के हस्तक्षेप? सन्तुलन का कैलकुलस?
उसके बचपन के सॉनेट लहरों में बिखरे हुए थे
जब तुम स्लेट पर खींची लक़ीरों और लफ़्ज़ों को देखते थे
मैदान और जंगलों की तरह; जब तुम
कम्पास और स्केल के साथ जद्दोजहद करते थे
वो पलक झपकते बदल देता था नज़्मों के मीटर को इंचों में
दरिया जंगलों को लाँघ, बादलों में तैरते महल,
आसमान को चीरती इमारतें बनाते हुए।
उसके कन्धे ज़िन्दगी के मज़बूत चट्टान हैं
सोने का विचार गर्दन के उस हिस्से में हल्का-सा दर्द है
जहाँ हाथ नहीं पहुँच पाता।
उसका काम अब लगभग पूरा हो चुका है।
वह आँकड़ों को आख़िरी बार दुहराता है,
जब कविता उसे देख रही होती, पोशीदा, ग़ायब।
काम ख़त्म करते हुए, वह हक़ीक़त के अँधेरे को
तोहफ़े में देता है एक जादुई योजना, कागज़ पर खींची लकीर
जो एक दिन मनसूबों को हक़ीक़त से जोड़ती एक पुल बन जाएगी,
या एक ऊँची इमारत, हवा से हलकी, एक हैरत।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सौरभ राय