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इंदौर के नाम / रंजना मिश्र
Kavita Kosh से
उस शहर में
महानगर होने की पूरी संभावनाएँ थीं
चौड़ी सड़कें, हरे भरे बाग़, तेज़ी से दौड़ती कारें
ऊँची इमारतें और व्यस्त लोग
पब्स और कॉर्पोरेट ऑफ़िस थे
एक फ़्लाई ओवर भी बन रहा था
और मुख्य सड़क के ठीक पीछे वाली सड़क पर
झुग्गियाँ भी अपनी जगह मुस्तैद थीं
कुछ खिड़कियाँ बंद थीं
लोग बिना एक दूसरे को देखे
बग़ल से गुज़र रहे थे
बस एक ही कमी रह गई
लोग अब भी रुक कर पते बता दिया करते थे
और एक दूसरे को पिछली पीढ़ियों से पहचानते थे
वे अब भी आगंतुकों को ग़ौर से देखते थे
कोई अपना भूला वापस तो नहीं आया?
बस इस तरह वह शहर
महानगर होते-होते रह गया!