भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इकतीस / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
सबद लोही है
-रोही है
जाणै बळती लालम-लाल कोई
कोई बिरलो ई बचै-
-रचै
आपरी अरथी रा अरथ न्यारा
नींतर राम-नाम सत है
जीव री पछै कांई गत है
चौरासी रो फेर
-बो ही है।