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इके दिन किसी गरीब की बिगड़ी बना के देख / शोभा कुक्कल
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इके दिन किसी गरीब की बिगड़ी बना के देख
आया है तू जहां में तो नेकी कमा के देख
मंदिर से कम न होगा ये तेरा मकान फिर
इस में किसी फ़क़ीर को खाना खिला के देख
क्या कुछ नहीं लिखा हुआ तेरे नसीब में
लालच का पर्दा दिल से ज़रा तू उठा के देख
चलना किसी के कदमों पे आसान है मगर
नक़्शे कदम किसी के लिए तू बना के देख
ऐ ज़िन्दगी सुना है तू बेहद हसीन है
तू मुझ गरीब को भी कभी मुस्कुरा के देख
हर वक़्त क्यों कुरेदता रहता है दिल के जख़्म
नग़मा खुशी का तू भी कभी गुनगुना के देख।