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इक्कीसवी सदी / सांवर दइया
Kavita Kosh से
एकदम अनावृत
चिकनी जांघे
गदराई बाहें और
भरे-पूरे श्रीफल
आंखें एकदम लाल
मानो छक कर पी रखी हो-
हत्थकढ़ी !
जहां जाता हूं
मेरे गले पड़ती है
यह उफनती नदी
पूछता हूं नाम तो
मिलता है एक ही जबाब
मैं इक्कीसवीं सदी !
अनुवाद : नीरज दइया