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इक कहानी / मनजीत टिवाणा / अनिल जनविजय

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मैं रोज़ एक पंछी बन जाती हूँ
अपने वजूद के अन्दरूनी हिस्सों में उड़ने के लिए ।

आँखों का स्वागत करता है जंगलीपन हर दिशा में
 बंजर भूमि में
ज़िद पर अड़े खड़े एक सूखे पेड़ को बचाओ ।

पेड़ की सबसे ऊँची फुनगी पर चढ़कर
चारों ओर उदासी के अलावा मुझे
और कुछ नहीं दिखा।

रात-रात भर जागते हैं जो लोग
उनकी नज़रों में
इसकी परछाइयाँ मैं रोज़ देखती हूँ ।
 
पंजाबी से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब इसी कविता का अँग्रेज़ी में अनुवाद पढ़िए
            Manjit Tiwana
               One story

Daily I turn into a bird
To fly over the inward stretches of my being.

Wildnerness greets the eyes in every direction,
Save a withered tree standing stubbornly,
In the wasteland.
Climbing up the top of the tree
I find nothing but sadness all around.
Its shadows I see daily
In the eyes of those who keep awake at night.