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इक दिन जा बैठी सो डार के पटा / बुन्देली
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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इक दिन जा बैठी सो डार के पटा
ईने बना दये, बिना नोन के भटा
तनक चीखो तो
मतारी मोरी, बोलो तो , कैसी जा ढूंड़ी दुलईया
एक दिन जा बैठी सो ले रई पुआर
और खीर मे लगा दओ हींग को बघार
तनक सूँघो तो
मतारी मोरी, बोलो तो, कैसी जा ढूंड़ी दुलईया
इक दिन जा बैठी सो कर रई सिंगार
और ओंठ मे लगा लओ ईने पाँव को महार
तनक देखो तो
मतारी मोरी, बोलो तो, कैसी जा ढूंड़ी दुलईया