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इक रिश्ता जोड़ने में ज़माना गुज़र गया / सिया सचदेव
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इक रिश्ता जोड़ने में ज़माना गुज़र गया
मुद्दत में जो बना था वह पल में बिखर गया
हम किस तरह यकीन करें उसकी बात का
सौ बार जिस ने वादा किया और मुकर गया
वो दर्द था के जिस से संभलना मुहाल था
अच्छा हुआ के दर्द का एहसास मर गया
परदेस में जो ठोकरें खाता है रात दिन
पूछो ये उस से छोड़के क्यों अपना घर गया
फिर दिल के इस मकां में आता वो किस तरह
इक बार ऐ सिया जो नज़र से उतर गया